पीड़ा का गहरा सोता,
आँखों से झलक ही जाता है,
अश्रु स्वेद से लथपथ वो वीर,
फिर भी डटकर रण कर जाता है,
~ मृत्युंजय का समर शेष
०७ दिसम्बर २०२४
(०२:०० मध्याह्न)
आपके आगमन का धन्यवाद. कृपया अपने सुझाव और भाव मुझे बताने का कष्ट करें. आपके अनमोल शब्दों के लिए सदैव आभारी रहूंगा..आपका शुभचिंतक, ~जयंत चौधरी
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