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Writer : Jayant Chaudhary (All work is Original)
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- तेरी माँ -
जो कांधा बन, तुझे सहारा देती है,
कभी वो भी, अन्दर से चुपचाप टूटी होगी...
जो तुझे भरपेट खिलाती है,
कभी वो भी, केवल पानी पीकर सोयी होगी...
जो तुझे पंख देकर उड़ाती है,
कभी वो भी, आसमान छूना चाहती होगी...
जो तेरे लिए दिए जलाती है,
कभी वो, अपने सपने भी उसमें जलाती होगी...
जो तेरा भय मिटाती है,
कभी वो, ख़ुद मन-ही-मन भयभीत रही होगी..
जो तुझे सर-आखों बैठाती है,
कभी वो, ख़ुद उपेक्षित सी पड़ी रही होगी...
जो तुझे जीवन अमृत पिलाती है,
कभी वो, ख़ुद घुट घुट कर विष पीती होगी....
तुझ जैसे दुनिया में लाखों हैं,
तेरी माँ, पर लाखों-करोड़ों में एक ही होगी...
जो तू ढूढ़ने निकलेगा,
कोई आत्मा, तेरी माँ जैसी कभी नहीं होगी...
युग-युग और चिर-अन्तर तक
तेरी माँ, अद्वितीय ही होगी, अद्वितीय ही होगी॥
~जयंत चौधरी
(स्व-रचित, २६ मार्च २००८)
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very nice...........
ReplyDeletebahut aachi rachna ki haa
बहुत ही अच्छे शब्दों में आपने माँ का गुणगान किया है....सच है माँ जैसे कोई नहीं होती...इस बेहतरीन रचना के लिए आप को नमन.
ReplyDeleteनीरज
काफी अच्छी रचना ... माँ तो अद्वितीय ही होती है ...सबसे ऊपर ....शब्द कम पड़ जाते है .....
ReplyDeletekaphi achcha likha h magar i expect something differ from u kyuki aap likh sakte hai . i know u have a potential
ReplyDeleteachchi rachna hai magar don't mind i expect something differ from u because i really know that u have a potential . leag se hatkar aur ek dharre se alag har koi nahi likh sakta. sir pls mere comment ko otherwise na lekar positive lijiyega.
ReplyDeleteSo true and touching this poem, Infact i observe that your poetry is moslty very toucning.
ReplyDeleteWill look forward for more!!
रिचा जी,
ReplyDeleteआपके शब्दों का मैंने कतई बुरा नहीं माना.
यह तो आपका प्रशंशा करने का तरीका है, इसका अर्थ यह है की, आप मुझ पर और ज्यादा भरोसा करती हैं.
हाँ अपने बचाव में एक ही बात कह सकता हूँ कि यह उस समय कि कविता है जब मैं नौसिखिया था...
बहुत ही कमजोर दलील है.. क्षमा करें...
आगे से और अच्छा लिखने कि प्रेरणा आपने अवश्य दे दी है.. मैं आपका आभारी हूँ.
"निंदक, नियरे राखिये...."
(निंदक याने केवल वोह नहीं जो स्वभाववश,निंदा के लिए निंदा करता हो.. अपितु वो है को सच कहने का साहस रखता हो और गहराई में जा अच्छे से विचार कर, अपने भाव प्रकट करता हो..).
आशा करता हूँ, आप ऐसे ही मेरे शब्दों को पढ़ते रहेंगी, और अपने भाव साफगोई से प्रकट करेंगी..
उसमे मेरा ही स्वार्थ छुपा है... आखिर मुझे और अच्छा बनाना है... :))
~जयंत
Tripti Ji,
ReplyDeleteThanks a lot for your kind words and becoming my "friend" (I somehow am not comfortable with 'follower' word)..
~Jayant
नीरज जी,
ReplyDeleteकोटि कोटि धन्यवाद... बस एक छोटी सी अरज है...
"नमन" ना कहें.. मैं बहुत छोटा हूँ और यह शब्द बहुत बड़ा है.
मार्क और नेहा जी,
आपका आभार... धन्यवाद... आपके साथ से ही मेरी कविता में प्राण आते हैं..
~जयंत
क्या खूब लिखा है ... बधाई।
ReplyDeleteसंगीता जी,
ReplyDeleteधन्यवाद... आप सदैव साथ देतीं हैं.. आगे भी साथ रहियेगा..
~जयंत
सही कहा आपने ..माँ अद्वितीय ही होती है
ReplyDeleteLovely Ji,
ReplyDeleteThanks for visiting my page and your kind words.
Please keep coming here.
Regards,
Jayant