न कोई आस,
न कोई प्यास,
मात्र, जीवन जीने की अमिट अभिलास।
न रातों के अँधेरे,
न सुबह के उजाले,
मात्र, अस्तित्व के होने का अहसास।
न रंगों की बरसात,
न मरू का पाश,
मात्र, अपने कर्तव्यों का भास।
न विजय की चाह,
न पराजय का डाह,
मात्र, मन में कर्म प्रण का वास।
न पाप की राह,
न पुण्य की चाह,
मात्र, सद्कर्म करने का प्रयास....
~ समर शेष
०४-०२-२०१९
न कोई प्यास,
मात्र, जीवन जीने की अमिट अभिलास।
न रातों के अँधेरे,
न सुबह के उजाले,
मात्र, अस्तित्व के होने का अहसास।
न रंगों की बरसात,
न मरू का पाश,
मात्र, अपने कर्तव्यों का भास।
न विजय की चाह,
न पराजय का डाह,
मात्र, मन में कर्म प्रण का वास।
न पाप की राह,
न पुण्य की चाह,
मात्र, सद्कर्म करने का प्रयास....
~ समर शेष
०४-०२-२०१९
बहुत बढ़िया कविता लिखी है आपने।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
Dhnyawaad mitr.... Aapke blog par awashy aayenge. :)
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