ये है एक, उद्यान मधुर,
जो कहलाता अंतर मन...
मुखड़े पर फैली ये मुस्कान,
इसकी है मद मस्त सुगंध...
और हँसी की हर एक गूँज,
इस उपवन की है जल तरंग...
इसकी बेलाओं सा इठलाए,
इतराए लहराए झूमे मेरा तन...
गुनगुनाहट मेरे अधरों की,
इसके मधुकर का गुन गुंजन...
बन प्रभा ढली मेरे नयनों में,
इसकी मधुर चंद्र किरन...
यह सुंदर सुरभित शोभित उपवन,
यह उपवन है, मेरा जीवन...
- जयंत चौधरी
०२-०२-२०१९
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