रुखा-सूखा, बासा भोजन करती माँ..
अपने सपनों को, स्वयम जला कर,
बच्चों का जीवन, रोशन करती माँ..
बच्चों को सजा-संवार, बनाकर सुन्दर,
खुद श्रींगार-हीन, रह जाती माँ..
मात्र्व्य पाते ही, एक ही क्षण में,
वो स्वयम, बच्ची से बन जाती माँ..
कठिनाई की धूप में, ख़ुद जल वृक्षों सी,
बच्चों को हर क्षण, छाया देती माँ..
प्रथम और सर्वोपरी शिक्षिका, बन बच्चों की,
'नव'जात को मा'नव', बनाती माँ..
हँसकर बच्चों पर, सर्वस्व समर्पित कर,
'मा'नवता का 'मा', बन जाती माँ ..
~जयंत चौधरी
जुलाई ३०, २००८
अपने सपनों को, स्वयम जला कर,
बच्चों का जीवन, रोशन करती माँ..
बच्चों को सजा-संवार, बनाकर सुन्दर,
खुद श्रींगार-हीन, रह जाती माँ..
मात्र्व्य पाते ही, एक ही क्षण में,
वो स्वयम, बच्ची से बन जाती माँ..
कठिनाई की धूप में, ख़ुद जल वृक्षों सी,
बच्चों को हर क्षण, छाया देती माँ..
प्रथम और सर्वोपरी शिक्षिका, बन बच्चों की,
'नव'जात को मा'नव', बनाती माँ..
हँसकर बच्चों पर, सर्वस्व समर्पित कर,
'मा'नवता का 'मा', बन जाती माँ ..
~जयंत चौधरी
जुलाई ३०, २००८
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